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आंग्ल मराठा युद्ध। मराठा साम्राज्य का अंतिम शासक कौन था? Anglo maratha yuddh. Maratha samrajya ka antim shasak koun tha?

मराठा साम्राज्य की स्थापना शिवाजी शाहजी भोंसले के द्वारा की गई थी, शिवाजी की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य का उत्तराधिकारी संभाजी बना। संभाजी ने कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया। जो कि उज्जैन के हिंदी एवं संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। संभाजी  9 वर्षों तक मराठा साम्राज्य के उत्तराधिकारी रहे। मखर्रब खा जो कि एक मुगल सेनापति था, ने संभाजी एवं कवि कलश को गिरफ्तार कर मार्च 1689 में इनकी हत्या कर दी। संभाजी की मृत्यु के पश्चात 1689 में ही राजाराम को राज्य अभिषेक कर मराठा साम्राज्य का छत्रपति शासक बनाया गया मराठा साम्राज्य को संभालते ही राजाराम ने दूसरी राजधानी सतारा को बनाया। राजाराम ने 11 वर्षों तक मराठा साम्राज्य का संरक्षण किया और 2 मार्च 1700 ईस्वी मैं मुगलों से संघर्ष करता हुआ मारा गया इसकी मृत्यु के पश्चात राजाराम की विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय का राज्याभिषेक करवाया और स्वयं मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बन गई। सन 1707 ईस्वी में खेड़ा का युद्ध साहू एवं ताराबाई के मध्य हुआ जिसमें साहू  ने विजय प्राप्त की विजय प्राप्त करते ही साहू  ने जनवरी 1708 ईसवी को राजधानी सतारा में अपना राज्य अभिषेक करवाकर गद्दी पर बैठ गया साहू ने अपने नेतृत्व में नवीन मराठा साम्राज्य के प्रवर्तक पेशवा लोगों को बनाया जो साहू के पैतृक प्रधानमंत्री भी थे, साहू ने 1713 ईस्वी में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा बनाया बालाजी विश्वनाथ 7 वर्षों तक पेशवा के पद पर रहे तत्पश्चात 1720 ईसवी में उनकी मृत्यु हो गई। बालाजी पेशवा की मृत्यु के पश्चात पेशवा बाजीराव प्रथम बने। पेशवा बाजीराव प्रथम ने मुगल साम्राज्य की कमजोर हो रही स्थिति का फायदा उठाते हुए साहू को उत्साहित किया और कहा कि अब हम इस पुराने वृक्ष के खोखले तने पर प्रहार करें शाखाएं तो स्वयं गिर जाएंगे हमारे प्रयासों से मराठा पताका कृष्णा नदी से अटक तक फैराने लगेगी इसके उत्तर में साहू  ने कहा निश्चित रूप से ही आप इसे हिमालय के पार कर देंगे। निश्चित ही आप योग्य पिता की योग्य पुत्र हैं। 
बाजीराव प्रथम एवं निजाम उल मुल्क के बीच 17 मार्च सन 1728 ईस्वी पालखेड़ा का युद्ध हुआ, जिसमें निजाम की हार हुई और निजाम ने बाजीराव प्रथम के साथ  मुंगी शिवागांव की संधि की। इसके पश्चात बाजीराव प्रथम ने 29 मार्च 1737 को दिल्ली पर आक्रमण किया आक्रमण के दौरान मुगल बादशाह मोहम्मद शाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा था। दिल्ली पर आक्रमण करने वाले यह प्रथम पेशवा थे, इसके बाद मुगल बादशाह मोहम्मद शाह दिल्ली छोड़ने के लिए तैयार हो गया बाजीराव प्रथम की मृत्यु 1740 ईस्वी को हो गई थी। इनकी मृत्यु के पश्चात पेशवा के पद पर बालाजी बाजीराव 1740 ईस्वी में बैठे। इन्हें नाना साहब के नाम से भी जाना जाता था। बालाजी बाजीराव के समय में ही पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ था जिसमें मराठों की हार हुई थी, इस हार के बाद बालाजी की मृत्यु 1761 ईस्वी में हो गई थी। बालाजी की मृत्यु के पश्चात 1761 ईस्वी में ही माधवराव नारायण प्रथम पेशवा बना पेशवा बनते ही इसने मराठों की खोई प्रतिष्ठा को वापस पाने का प्रयत्न किया । माधवराव ने मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को पुणे दिल्ली की गद्दी पर बैठाया जो कि पहले ईस्ट इंडिया कंपनी की पेंशन पर रह रहा था मुगल बादशाह अब ईस्ट इंडिया कंपनी की बजाय मराठों का पेंशनभोगी बन गया था। माधवराव नारायण की मृत्यु के पश्चात पेशवा पद के हकदार माधवराव नारायण द्वितीय हुए किंतु अल्पायु के कारण मराठा साम्राज्य की देख रेख का भार 12 भाई सभा ने उठाया 12 भाई सभा  12 सदस्यों की एक परिषद थी जिसमें दो महत्वपूर्ण सदस्य थे - 

1. महादजी सिंधिया
2. नाना फड़नबीस
सन 1776 ईस्वी में मराठा और कंपनी के बीच पुरंदर की संधि हुई जिसमें एक कंपनी ने रघुनाथ राव के समर्थन को वापस ले लिया था। 
प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध :- यह मराठों और अंग्रेजों के बीच में होने वाला प्रथम युद्ध था, यह युद्ध सन 1782 ईस्वी में सालबाई संधि के साथ ही खत्म हुआ था। 
द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध :- सन 1703 ईसवी में भोसले ने नागपुर में अंग्रेजों को चुनौती दी जिसमें अंग्रेज और मराठों के बीच द्वितीय युद्ध हुआ  जो 2 वर्षों तक चला तत्पश्चात 7 सितंबर 1803 ईसवी को देवगांव की संधि के द्वारा इस युद्ध को समाप्त किया गया। 
तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध:- अंग्रेजों और मराठों के बीच होने वाला यह तृतीय युद्ध था जोकि 1817 ई से 1819 ई तक चला, इस युद्ध के बाद मराठा शक्ति और पेशवा के वंशानुगत पद को  खत्म कर दिया गया। 
मराठा साम्राज्य का अंतिम शासक और पेशवा पद का अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय था यह अंग्रेजों की सहायता से ही पेशवा बना था बाजीराव द्वितीय सहायक संधि स्वीकार करने वाला प्रथम मराठा सरदार था और मराठों के पतन का कारण भी इसे ही माना जाता है।  कोरेगांव एवं आष्टी के युद्ध में हारने के बाद 1818 ईस्वी में    मेलकम के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था अंग्रेजों ने बाजीराव द्वितीय को पुणे के पेशवा पद से हटाकर कानपुर के पास बिठूर भेज दिया और उसे जीवन जीने के लिए पेंशन देने लगे बाजीराव द्वितीय की मृत्यु 1853 ईस्वी में बिठूर में ही हो गई थी।   




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