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विजयनगर साम्राज्य की शासन व्यवस्था।Vijay nagar samrajya ki shasan vyavastha.

आयंगर व्यवस्था - विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के बाद ऐसे सुचारू रूप से संचालित करने के लिए आयंगर व्यवस्था को लागू किया गया जिसमें प्रत्येक ग्राम को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में संगठित किया गया असंगठित ग्रामीण इकाइयों की व्यवस्था को देखने के लिए 12 शासकीय अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी इन्हें वेतन के बदले में लगान मुक्त एवं कर्मभूमि प्रदान की जाती थी इन्हें जो पद प्रदान किया जाता था वह अनुवांशिक होता था अर्थात वह अपने पद को बेच या गिरवी रख सकते थे ग्राम स्तर की किसी भी प्रकार की संपत्ति को बिना इन अधिकारियों की इजाजत के नहीं बेचा जा सकता था और ना ही खरीदा। 
कर्णिक  - इसके पास जमीन के क्रय-विक्रय से संबंधित सभी प्रकार के दस्तावेज होते थे। 
उम्बलि - यह लगान मुक्त भूमि की भू धारण पद्धति होती थी जो कि ग्राम में विशेष सेवाओं के बदले दी जाती थी। 
कुटटगी- बड़े भूस्वामी एवं ब्राम्हण जो कृषि कार्य स्वयं नहीं करते थे, वह अपने खेतों को कृषि के लिए किसानों को पट्टे पर दे देते थे इस प्रकार की भूमि को कुटटगि कहा जाता था |
कूदि - यह  कृषक या मजदूर होते थे जो भूमि के क्रय विक्रय के साथ ही हस्तांतरित हो जाते थे। 
वीर पंजाल- यह दस्तकार वर्ग के लोग होते थे जो चेट्टियों की तरह  व्यापार में निपुण होते थे।
कदाचार - विजयनगर साम्राज्य की शासन व्यवस्था में सैन्य विभाग को कदाचार कहा जाता था ।                  दंडनायक या सेनापति  - यह सैन्य विभाग का उच्च अधिकारी होता था
 बड़वा - यह वह लोग होते थे जो उत्तर भारत से दक्षिण भारत में आकर बस जाते थे अतः इन्हें बड़वा कहा जाता था वेश वग  - विजयनगर साम्राज्य के दौरान मनुष्यों का क्रय विक्रय किया जाता था अर्थात दास प्रथा प्रचलन में थी और इन मनुष्यों को वेगवग कहा जाता था
देवदासी  - यह वे महिलाएं होती थी जो मंदिरों में रहती थी इनकी आजीविका के लिए शासन द्वारा भूमि या नियमित वेतन प्रदान किया जाता था। 


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