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स्वामी दयानंद सरस्वती एवं उनके विचार।

स्वामी दयानंद सरस्वती जी 1876 में स्वराज को "भारतीयों के लिए भारत" के रूप में आह्वान करने वाले पहले व्यक्ति थे महर्षि दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक भारतीय दार्शनिक एवं सामाजिक नेता थे।
                          दयानंद सरस्वती जी का जन्म 1824 में गुजरात के तंकारा में हुआ था। स्वामी जी का मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्म की श्रेष्ठता स्थापित करना और हिंदू धर्म की बुराइयों को दूर करना था उन्होंने हिंदू धर्म में सुधार के विभिन्न कार्य किए-                
1. सामाजिक सुधार
2. धार्मिक सुधार 
3.साहित्यिक सुधार 
4.शैक्षणिक सुधार

स्वामी जी के विचार -

1. आत्मा अपने स्वभाव में एक है, लेकिन उसके अस्तित्व अनेक हैं। 

2. प्रार्थना किसी भी स्वरूप में प्रभाव कारी है क्योंकि यह एक प्रक्रिया है इसलिए इसका परिणाम होगा  यही इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम स्वयं को पाते हैं। 

3. लोगों को चाहिए कि वह ईश्वर को जाने और अपने कार्यों में उनका अनुकरण करें दोहरा और समारोहों का कोई फायदा नहीं। 

4. भोले भाले सुख पुण्य और अच्छी कमाई से प्राप्त होते हैं। 

5. धन एक ऐसी चीज है जिसे ईमानदारी और न्याय से अर्जित किया जाता है इसके विपरीत अधर्म का धन है। 
 
6. मनुष्य को दिया जाने वाला सबसे बड़ा वाद्य यंत्र आवाज है। 

7. जीवन में मृत्यु को टाला नहीं जा सकता हर कोई यह जानता है फिर भी अधिकतर लोग अंदर से इसे    नहीं मानते- ' यह मेरे साथ नहीं होगा' इसी कारण से मृत्यु सबसे कठिन चुनौती है जिसका मनुष्य को सामना करना पड़ता है। 

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